Friday, July 3, 2009

जाने कहाँ गए वो दिन

जाने कहाँ गए वो दिन
आज जब अपने आप को 23 साल के करीब पाता हूं तो कई नए ख्याल मेरे दिल में आते हैं। कभी तन्हाई में अपने बारे में सोचने पर मानो यकीन कर पाना मुष्किल होता है कि कैसे इतना लंबा सफर , इतनी दूर घर-परिवार से यहां अकेले आ बैठे हैं। जब बचपन मे पल भर को मां कहीं चली जाती थी तो रो-रो कर बुरा हाल हो जाता था और जब अंधेरी रात मे किसी बुरे सपने से चीख निकल जाती थी तो लगता तो मुंह से सिर्फ पापा ही निकलता। उनसे दूर जाना असंभव था। और आज कई महीने उनके बिना यहां अंजान लोगों के बीच मे ऐसे गुजर जाते हैं जैसे कि पता ही नहीं चलता। शायद यही जिंदगी है। जो पल भर मंे हमंे कब कैसा बना दे कहना मुष्किल है।
पहली क्लास मे जब स्कूल जाते तो आधे समय ही स्कूल मे रो दिया करते कहते कि मां की याद आ रही है। इस बात पर टीचर अक्सर कहती कि ये कैसा लड़का है जो जरा सी दूर आने पर मां के लिए रोता है आगे कैसे पढ़ेगा तो हम कहते कि हम यहीं रहेंगे सदा मां के आंचल की छांव मे । लेकिन दुनियां की इस दौड़ मे ऐसा हो न सका। आज मां का आंचल भी है और छांव भी, लेकिन हम उसकी सीमा से कई किलो मीटर दूर यहां बैठे हुए हैं। जहां सिर्फ उसकी आवाज ही सुनाई देती है कभी-कभी फोन पर। जब बचपन मे पापा की डांट पड़ती तो लगता कि पापा कितना गुस्सा करते इससे अच्छा तो कहीं दूर जा कर अकेले रहना है। पर आज जब दूर और अकेले हैं तब लगता है कि कभी तो कोई हमे टोके यह कहते हुए कि बेटा रात में इतनी देर कैसे हो गई। तेरे ये दोस्त कैसे हैं या यहां जाना तेरा ठीक नहीं। लेकिन ऐसा अब हो नहीं पाता। क्यांे कि यह सब पीछे छूटता चला जाता है।
सच कहे तो जिंदगी की गति बहुत तेज है एक खास तो यह है कि इसकी गति का एहसास हमें कई पड़ाव पार कर लेने के बात होता है और हम पीछे मुड़कर जब देखते हैं तो लगता है कि यार कल ही की तो बात है। लेकिन वो कल आज गुजरा हुआ कल बन चुका है। जिस तक पहुंचना मुष्किल है बहुत मुष्किल। कभी किसी बूढे़ या जवानी से आगे निकल चुके इंसान के पास बात करके देखिए तो आप पाएंगे उनक बातों मे बचपन और बीती हुई यादें जरूर शामिल होती हैं। हमारे एक बाबूजी थे उनके पास बैठने और बातचीत करने का काफी मौका मिलता रहा। और विष्वास मानिए जिंदगी तो उन्होंने ही अपनी गुजारी थी लेकिन उनकी पूरी कहानी हम आज भी किसी को सुना सकते हैं। क्ये कि जब भी बातचीत होती तो वे आज की बाते से शुरू होकर उनके बचपन में पहुंच ही जाती। और वे अक्सर अपनी बुझी आंखों मे उन्हीं दृष्यों का ताजा करके खुश हो जाते।
शायद यही जिंदगी है जो जाने के बाद भी अपनी कसक इंसान की यादों मे छोड़ जाती है।

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