



देश का युवा भी रैली की गिरफ्त में
राजनीति में युवाओं के आने के बाद से देश के सुखदभविष्य का स्वप्न देखने वाले लोगों को भले ही यह पढ़ने मेंकड़वा लगे लेकिन यह सत्य है कि यह युवा जोश भी चंद रैलियों के ओजस्वी भाषणों तक केन्द्रित होता जा रहा है।भोपाल में एनएसयूआई के युवा नेताओं ने प्रदेश सरकार की नीतियों के विरोध में विशाल रैली निकालकरविधानसभा घेराव के नारे के साथ अपना जोश प्रकट करने का प्रयास किया हो। लेकिन हमारे देश में रैलियों औरसभाओं की हकीकत क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। जहां भाडे की भीड़ इकट्ठा करके किसी सरकार को भलाबुरा कहना कोई नई बात नहीं है। कई बार दो पार्टियों की एक साथ रैली होने पर ऐसी हास्यपद स्थितियां निर्मित होजाती हैं जहां कुछ सैंकड़ा कार्यकर्ताआें पर ही दोनों पार्टियों की नाक बचाने की जिम्मेदारी आ जाती है। इसबहाने कार्यकर्ताआें का फायदा यह हो जाता है कि वे दोनों पार्टियों को बुरा बताकर खुद भारत के जिम्मेदारनागरिक होने का परिचय दे देते हैं।
ऐसा नहीं कि यह लेख रैली या प्रदर्शनों का विरोध करने के लिए लिखा गया है। अगर गंभीर रूप से सोचा जाए तोरैली भी सरकार की गलत नीतियों पर उसे आगाह करने के लिए निकाली जाती है। लेकिन क्या यह एक तरफासंवाद नहीं होता, जहां एक पार्टी तो अपनी पूरी भड़ास और आरोप लगाकर अपनी बात कह लेती है और दूसरी पार्टीउसका मजा टीवी या समाचार पत्र पर यह सोच कर लेती है कि हमारी अगली रैली में इससे अधिक भीड़ कैसे जुटाईजाए। कहने को तो दोनों पार्टियां जनता के हितों के लिए ही संघर्ष का दिखावा करती है लेकिन जनता जो चाहतीवह उसे नहीं मिल पाता। क्या बिना निष्कर्ष की प्राप्ति के किसी अभियान या प्रदर्शन को सफल कहा जा सकताहै,...... नहीं.....कभी नहीं.....। होना यह चाहिए कि जब कभी ऐसे प्रदर्शन किए जाएं तब दोनो पार्टियों कोआमने-सामने होना चाहिए, जिससे आरोपों और जबावों की असलियत तुरंत सामने आ सके। हालांकि सुरक्षा कीदृष्टि से यह कठिन हो सकता है लेकिन जनता के नजरिए से ऐसा ही होना चाहिए। हो सके तो कम लोगों के बीच मेंही सही , लेकिन जनता को उसके प्रश्नों के जबाव तो मिलें। जब तक ऐसा नहीं होगा ऐसे विरोध प्रदर्शन सिर्फदिखावा मात्र ही रहेंगे।
कृपया इसे पढ़ने के बाद मुझे किसी पार्टी का हितैषी न समझा जाए।
धन्यवाद
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